तन्वी गंगल
अगर मैं भारत जाती
अगर मैं भारत जाती तो मैं पहले अपनी बाबाजी-दादीमा से मिलने जाती दिल्ली में. फिर कुछ दिन उनके सात गुजरने के बाद, मैं जैपुर जाती अपनी चाची से मिलने. वह मैं कपडे और छुरियां और गेहना खरीदनि जाती. मुझे शीश महल देखने की बहुत इचा होती, तोह मैं शीश महल को देखने जाती. वहां मैं कई फोतैयाँ खीचती मुग़लिय स्थापत्य कि. फिर मैं चाची के घर जाती, सरे दिन घूमने के बाद, खाना खाने के लिया. वह हमेशा मेरे सबसे पसंदिता खाना बनती- गरम-गरम छोले और ताज़ी टेलवे बटुरे. दो तीन दिनों के बाद मैं अपनी नानू के सात वैष्णोदेवी मन्दिर जाती जम्मू-कश्मीर में. उसके बाद मैं नानू के सात उनकी घर दिल्ली में वक़्त गुज़रती, चांदनी चौक जाकर सरकवाले पराठे खाते.
मैं भारत में रहूँ दिवाली कि समय, टाकि मैं अनुभव कर सकूं सरे दिवाली कि रिवाज़, जैसे कि हर समय गाना बजाना, परिवार कि सात्गी, या पटके चोरना, या रावन को जलना, पर सुबसे बार्कर, दिवाली कि एक दिन बाद मेरी नानू कम-से-कम पचास किसम कि अलग-अलग खाना बनती है, और खासकरके मेरे सबसे पसंदिता मिठाई, गुलाब जामुन बनती. मेरी नानू के हांथ के गुलाब जामुन दुनिया के सबसे स्वादिष्ट गुलाब जामुन होते हैं. मैं तोह उससे खा-खाकर इतना बिगरगए कि मैं किस्सी और दूकान कि गुलाब जामुन खाने का सोच भी नहीं सकती.
जब अमेरिका लौटने का वक़्त आये, मैं बोहोत उदास पार्टी क्योंकि मुझे ख्याल आता है कि अमेरिका मैं इतना अच्छा खाना, सरे परिवार की सात्गी, और जानकारी की सब लोग मेरे मात्री ज़बान समाज सकते हैं.
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