एक बार, जब मैं छोटी थी अपनी सेकंड गर्दे क्लास में मेरा वक्त था अपनी क्लास चूहा को एक हफ्ता के लिए देख-बाल करना. में बहुत बेचैनी से आपनी मौका के लिए इंतज़ार कर रही थी, क्योंकि चूहा मेरे सबसे पसंदिता जानवर था. मेरा पहला शब्द 'चूहा' था तो स्वयम मुझे बहुत चूहा के सात खेलना और तैयार करना का शौक था. मेरे कभी कोई पाला हुआ जानवर नहीं रहा क्योंकि मेरे माँ-बाप मुझे रकने नहीं दिए. पहले दिन वह चूहा के सात मुझे काफी मज़ा आया, मैं उसको एक नाम दी, क्लास के नाम से अलग, मैं उसको बुलाती थी 'रानी' क्योंकि मैं उसको रानी की तारा साझा-धदाजी, उसके बारे में पहले सोचती, अगर उसको अच्छा खाना मिल रहा था, या उसको ठीक से पानी मिल रही थी. मैं तो खुद से भी ज्यादा, उसकी ख्याल रखती. जब मैं दूरी दिन क्लास में आई मैं सब को बताई जैसे-जैसे मैं उसके सात खेली और देखबाल की और एक दूसरा नाम भी दी, तभी कोई चालाक लड़का मुझे बोला कि मेरी प्यारी रानी लड़की चूहा नहीं, लड़का चूहा हैं. एकदनसे मैं उदास परगाई, और जब मैं वापस घर पौंची मैं चूहा कि तरफ देखि भी नहीं. धीरे-धीरे एक दिन गूजर फिर दो, फिर तीन, कोई उसको नहीं खाना या पानी या प्यार दे रहा था और जल्दी उसकी हालत बिगरती गयी, पहले वह दिन भर सोता, फिर वह अपने आप को साफ़ करने भूल गया, फिर वह पीला रंग हो गया, तब तक मेरी माँ मुझे बताई कि मेरा चूहा मरने वाला था. मैं सोची मेरे लिए न सही, क्लास के लिए मुझे उसकी ख्याल रखनी चाहिए. बाकी तीन दिनों में मैं उसको वापस स्वस्त बनायीं और क्लास को पता भी नहीं चला कि मैं उसका ख्याल नहीं राखी कुछ दिनों के लिए.
Monday 21 November 2011
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