Thursday, 15 March 2012
चुरा पहने का रस्म
Thursday, 8 March 2012
जन्मदिन
तन्वी गंगल
जन्मदिन
सुबह उतकर श्रीया को एक इचा थी, अपना जन्मदिन धूमधामसे बनाने का इचा| पहले, श्रीया गिर गयी सीरियों से, पर कोई बात नहीं उनकी माँ ज़रूर कुछ अच्छा खाना बनायी है नाश्ता के लिए| पर यह भी नहीं हुआ, श्रीया की माँ अभी तक सो रही थी, तो कोई उसको स्कूल नहीं चोर सक्का| तब तक श्रीया रोने लगी, यह उसके सात क्यूँ हो रहा था और इस खास दिन पर| जब श्रीया स्कूल पहुंची ओसके सारे दोस्त ओनसे बात नहीं कर रहे थे, उसकी सबसे खास दोस्त भी उससे सिर्फ 'नमस्ते' कही| श्रीया को समाज में ही नहीं आ रहा था की सब लोग क्यूँ नाराज़ थे उससे, वेह कभी गलत काम नहीं करती है| जब वह नाश्ता के लिए बैटी उसके सारे दोस्त उसके अंकों से अंक नहीं मिलकर अपनी मेज़ पर बैटने नहीं दिए| यह तो दुनिया का सबसे बूरा दिन निकला| जब घर के लिए बस भी छूट गयी, तो श्रीया के सारे आशाएं दिन के, टूट गये| जब श्रीया घर लौटी कुछ घंटे बाद, घर तक चलने से बहुत थक गयी, और लगता है की बिजली भी गयी क्योंकि सरे घर अँधेरा में पड़ा था| जब श्रीया ने ऊपर कमरे तक जाने की लाइट ओं करी तो सरे सीरियों में उसके सरे दोस्त, माँ बाप, और परिवार वोलों खरे थे एक धेर साडी मिठाई के सात| चुटकी में वह अपनी सारा दिन की मुश्किलें भूल गयी और एक लाइट से उसकी साड़ी परेशानियाँ दूर हो गयी और इचायें पूरी हो गयी| यह सचमुच सबसे अच्छा आश्चर्य था|
Monday, 21 November 2011
क्या आपसे कभी कोई भूल हुई है?
एक बार, जब मैं छोटी थी अपनी सेकंड गर्दे क्लास में मेरा वक्त था अपनी क्लास चूहा को एक हफ्ता के लिए देख-बाल करना. में बहुत बेचैनी से आपनी मौका के लिए इंतज़ार कर रही थी, क्योंकि चूहा मेरे सबसे पसंदिता जानवर था. मेरा पहला शब्द 'चूहा' था तो स्वयम मुझे बहुत चूहा के सात खेलना और तैयार करना का शौक था. मेरे कभी कोई पाला हुआ जानवर नहीं रहा क्योंकि मेरे माँ-बाप मुझे रकने नहीं दिए. पहले दिन वह चूहा के सात मुझे काफी मज़ा आया, मैं उसको एक नाम दी, क्लास के नाम से अलग, मैं उसको बुलाती थी 'रानी' क्योंकि मैं उसको रानी की तारा साझा-धदाजी, उसके बारे में पहले सोचती, अगर उसको अच्छा खाना मिल रहा था, या उसको ठीक से पानी मिल रही थी. मैं तो खुद से भी ज्यादा, उसकी ख्याल रखती. जब मैं दूरी दिन क्लास में आई मैं सब को बताई जैसे-जैसे मैं उसके सात खेली और देखबाल की और एक दूसरा नाम भी दी, तभी कोई चालाक लड़का मुझे बोला कि मेरी प्यारी रानी लड़की चूहा नहीं, लड़का चूहा हैं. एकदनसे मैं उदास परगाई, और जब मैं वापस घर पौंची मैं चूहा कि तरफ देखि भी नहीं. धीरे-धीरे एक दिन गूजर फिर दो, फिर तीन, कोई उसको नहीं खाना या पानी या प्यार दे रहा था और जल्दी उसकी हालत बिगरती गयी, पहले वह दिन भर सोता, फिर वह अपने आप को साफ़ करने भूल गया, फिर वह पीला रंग हो गया, तब तक मेरी माँ मुझे बताई कि मेरा चूहा मरने वाला था. मैं सोची मेरे लिए न सही, क्लास के लिए मुझे उसकी ख्याल रखनी चाहिए. बाकी तीन दिनों में मैं उसको वापस स्वस्त बनायीं और क्लास को पता भी नहीं चला कि मैं उसका ख्याल नहीं राखी कुछ दिनों के लिए.