Monday 22 November 2010

विधि की भूल

मेरे से भूल बहुत होती है क्यों कि मै बहुत अदक्ष हू. हर दिन मै कम से कम एक बार तो गिरती हु. मुझे मालूम नहीं है कि मै इतना क्यों गिरती हूँ. और जब भी मै गिरती हु मै हमेशा बहुत सारे लोग के सामने गिर जाती हु. एक दिन मै हिंदी के क्लास पर जा रही थी और मै उप्पर सीडियों पर चढ़ रही थी और मै निचे गिर गई. मेरे पीछे बहुत लोग थे क्यों कि बारा बज ने वाले थे और सब अपनी-अपनी क्लास्सों पर जा रहे थे. मेरा चेरा बिलकुल लाल हो गया था क्यों कि मै शर्मिं आ गयी. शुक्र है कि हिंदी के क्लास मै से कोई वहा नहीं था नहीं तो वेह मेरा मज़ाक बहुत उठाते और फिर मै खुश नहीं होती. 

मुझे मालूम नहीं मै इतना क्यों शर्मिं आ गयी क्यों कि मै बहुत गिर जाती हु. दिन में कम से कम एक दो बारी तो कुछ न कुछ भूल तो कर जाती हूँ. मेरे दुसरे क्लास्सों मे मै कभी काफी बेवकूफ लगती हूँ क्यों कि मेरे सावल अजीब लगते है. लेकिन कभी कभी मुझे कुछ चीज़े मालूम नहीं होती तो मुझे सवाल पूछना पड़ता है. लेकिन कोई बात नहीं. जब भी ऐसा होता है मुझको मै अपने उप्पर हस्ती हूँ क्यों कि मुझे बुरा नहीं लगता है. मेरी विशेषता ऐसी ही है और मुझे ख़ुशी है कि मै रोती नहीं हू. 

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