मेरे बचपन में मैं एक बहुत बातूनी और रोचक लड़की थी| मुझे लगता है की मैं बचपन में ज्यादा बोलती थी और अब मैं थोड़ा कम बातूनी हूँ| मेरी माँ हमेशा मुझे कह रही थी की मैं एक दिन लॉयर ज़रूर बनूंगी क्यों की मैं मेरे भाई के साथ हमेशा लड़ती थी| जब मैं एलेमेंतारी स्कूल में थी मुझे बहस करने का शौक था| उन दिनों में, मेरा सपना था की मैं लेखिका या कलाकार बनूँ| हर रोज़ मैं मेरी गुप्त (सीक्रेट) दिअरी में घंटों के लिए लिखती थी| कभी कभी मेरी माँ मुझे रत के खाने के लिए बुलाती थी और मैं उन को सुन भी नहीं सकती क्यों की मैं मेरी मन की प्राइवेट दुनिया मैं खोई थी| जब मैं ६ या ७ साल की थी मेरी सबसे जिगरी सहेली का नाम डानीयल था| डानीयल बहुत सुन्दर थी| उसके बाल रेशम जैसे थे और रंग में सुनहरी था| उस की आँखें समुद्र जैसे नीली थी| मैं डानीयल की खूबसूरती से ईर्ष्या (जेलुस) थी| मेरे माता-पिता डानीयल को कभी नहीं देख
पाया| इस बात का कारण था की डानीयल मैं ने मन में बनाई थी| डानीयल मेरी इमागिनेरी सहेली थी| मैं डानीयल को बहुत प्यार करती थी और वह मेरे साथ हर जगह आती थी| हमारे घर में खाने की मेज़ पर उसकी एक सीट थी| मेरी माँ डानीयल का मन पसंद खाना पकती थी और कुछ दिन माँ उस के लिए लंच का डिब्बा भी तैयार करती थी| जब मैं छोटी थी मुझे मालूम भी नहीं था की मेरी माँ मुझे कितना प्यार करती होगी की वह यह सब एक इमागिनेरी सहेली के किये करें| बचपन में मैं बहुत सुखी थी की मेरी माँ इतनी समझदार और कृपालू थी!
पाया| इस बात का कारण था की डानीयल मैं ने मन में बनाई थी| डानीयल मेरी इमागिनेरी सहेली थी| मैं डानीयल को बहुत प्यार करती थी और वह मेरे साथ हर जगह आती थी| हमारे घर में खाने की मेज़ पर उसकी एक सीट थी| मेरी माँ डानीयल का मन पसंद खाना पकती थी और कुछ दिन माँ उस के लिए लंच का डिब्बा भी तैयार करती थी| जब मैं छोटी थी मुझे मालूम भी नहीं था की मेरी माँ मुझे कितना प्यार करती होगी की वह यह सब एक इमागिनेरी सहेली के किये करें| बचपन में मैं बहुत सुखी थी की मेरी माँ इतनी समझदार और कृपालू थी!
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