बचपन की लम्हे
मेरे बचपन में मैं बहुत शरारती थी. मैं अपनी माँ और दादी को बहुत सताती थी. कभी कभी मैं घर से घूम जाती थी और माँ और दादी को मुझे दुंदन पर्द्था. वे मुझसे बहुत नाराज़ होते जब मैं इससे करती थी. बहुत मज़ा आता था. दादी हमारा देखबाल करती थी क्यों कि मम्मी पापा दोनों काम से ढेर से आते थे. मैं और गौरांग पदो पर चर्दते थे. कभी कभी हम मचारो के साथ भी खेलते थे. एक लार्द्की थी जो हमारे पड़ोस में रहेती थी. हम उससे बहुत खेलते थे. मेरे बचपन में हम केंतुच्क्य में रहेते थे. केंतुच्क्य एक बहुत सुन्दर जगा हैं और वहा कि मासूम बहुत खूब भी थे. एक बार मुझे याद है कि हम एक बोवलिंग अल्ले पर जा रहे थे मेरी जनम दिन मानाने के लिए. वहा मेरी सारी सहेलियां और दोस्त आयें. उस दिन बहुत मज़ेदर था. केंतुच्क्य के बाद हम मिचिगन आये और यहाँ हम १२ सालों से रहे रे हैं. मिचिगन में मैं इतनी शरथी नहीं थी और एक लार्द्की मेरी सबसे अच्छी दोस्त बन गयी. उसका नाम था वनेस्सा. वनेस्सा और मैं पांच साल के लिए बहुत जिगरी दोस्त थे. हम सब कुछ साथ साथ करते थे. कभी कभी वोह मेरे घर आती थी और हम बातें करते थे और कभी कभी में वहा उसके घर पर जाती थी. मगर वनेस्सा कि परिवार मिचिगन से मोवे हो गया २००२ में तोह हम मिल नहीं पाए और हमारी दोस्ती और नहीं बर्ड सखी.
Monday 24 January 2011
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