Sunday 24 January 2010

मेरी बचपन की स्मृतिया (सतीश मोहन)

मेरी ज़िन्दगी की आदि बहुत दिलचस्प का समय था. मैं सुरूप बच्चा था, तो कोई नहीं मुझे डान्टते. इस लिए मैंने छोटी छोटी उपकार करता था.

एक बार, जब मैं साथ-आठ साल था, मैं और अपना दोस्त विधालय खेल का मैदान में खेल रहे थे. मेरा दोस्त बहुत शरारती था. वह मेरा जैकेट का टोपी विधालय का छत पर फेंक दिया. मैं बहुत गुस्से में हो गया. वह भी हसने लगा. मैं चिल्लाया, "क्या कर रहा हो तुम? जाओ, मेरी टोपी ले आओ. अभी!" मेरा दोस्त ने कुछ नहीं बोला और दोड़ने लगा रहा था. मैंने भी उस का पिच्छा कर लग रहा था. दो-तीन मिनट के बाद, मैं उस पर कुद गया और वह निच्चे गिर गया. तत्काल मैंने उसे मरने और दांगने लगा था. मेरा दोस्त रोया और उस का घर को लोटा. मैंने अपना टोपी दोस्त से वापुस नहीं पा सका. जब मैंने घर जाकर दरवाज़ा खोला, मैंने अपना माँ खड़े देखा था. कह बहुत गुस्सी थी. वह देखकर मुझे पता है की मैं तकलीफ में था.

अगले दिन मैं अपना दोस्त का घर पर गया और माफ़ी मांगना पड़ता था. अब भी मैं गुस्सा था, लेकिन मैंने अपना दोस्त का 'सॉरी' बोला और हम ने हाथ मिलाये. मुझे पता है की वह उचित बात था. मेरा दोस्त भी 'सॉरी' बोला और उसने एक नया टोपी मुझे दिया. वह दिन से हम दोनों कभी नहीं मारे.

मेरा बचपन में बहुत सबक सीखा. आज वे सब मुझे अच्छी से उपयोग करता हूँ.

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