Saturday 3 April 2010

हिन्दू फेस्टिवल

मुझे मालूम हैं कि हमने क्लास में होली के बारे में बात कर चुके है, लेकिन यह एक त्योहार है जो हम धूम धाम से मनाते हैं। मेरा परिवार बड़े महेश्वरी महासबा ग्रुप में हैं, और एस ग्रुप में हमारे सारे गहरे दोस्त हैं। तो जब मैँ होली के समय घर पर होती थी, हर साल यह ग्रुप एक बड़ा होली फंगक्शन का इंतज़ाम करता था। यह फंगक्शन दुर्गा मंदिर में होता था. लेकिन यहाँ जाने के पहेले हम घर पर पूजा करते थे, और यह पूजा करीब आधा या एक घंटे के लिए रहेता था। पूजा के बाद हम कोई पुराने कपडे पहनते थे, और फिर मंदिर के लिए निकलते थे।

जब हम मंदिर पहुँचते, पहले सब लोग आपस में बात करते थे और फिर
फन्गाक्षण शुरू करने के लिए हम एक साथ आरती करते थे। फिर प्रोग्राम शुरू होता था, कुछ लोग डांस तैयार करके आते थे और सब के लिए पेर्फ्रोम करते थे। हर साल होली प्रोग्राम में, मैँ और मेरी सहेलियां कोई-न-कोई गाने पर एक डांस तैयार करती थी। प्रोग्राम के बाद, सब लोग (आंटी और अंकल) उटकर बहुत नाचते, और फिर हम बहार जाकर होली खेलते। हम सिर्फ पावडर रंग के साथ खेलते, क्योंकि पानी वाला रंग नहीं निकलता और काम बढ़ जाता। हम सब को बहुत मज़ा आता था, हम सब हर तरफ भागते और रंग फेंते। खेलने के बाद हम अपने अपने घर जाते और लम्बा शोवेर लेते।

2 comments:

  1. आप के लेख को पढकर मुझे अपने गावं की याद आ गयी
    धन्यवाद

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  2. दिव्या जी,
    वैरागी जी ने बिल्कुल ठीक ही कहा कि गांव की याद आ गई...वह गांव जहां जाना भी अब जलसे सरीखा हो गया है...
    मानो अपने पीहर (दिल्ली) से ससुराल जाना हो...

    आलोक साहिल

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