Monday, 24 October 2011

Ek Din

क्या मैं आप को कहूँगी? दूख की दिन और खुश की दिन हैं. कुछ उदास की दिन बहुत बहुत उदास हैं. लेखिन कुछ दिन सिर्फ़ झुंझाहत हैं. 
ख़ैर! मेरी बचपन में मैं मेरे नाना जी और मेरी नानी जी के घर गई. मुझको उस के घर बहुत पसंद हैं क्योंकि मैं और मेरे दो भाई हम लोग वहां  खेलते थे. भी हमरे चचेरे अपने नाना और नानी जी के घर के पास रहते थे. कभी कभी हम उस के साथ खेले भी थे. 
एक दिन मैं  मेरा घर से मेरे साथ अपना खिलैना लायी थी.  मेरी नानी जी उसके घर पर कुछ खिलौने भी थी. नानी जी के एक खिलैना मेरी खिलैना के  तरह था. तो समस्या शुरू किया. भुलाकर , नानी जी को मैं चोर सोची थी. यह सच  नहीं था. तब मैं चोर नहीं थी और आब मैं चोर नहीं हूँ! मुझको नानी जी बुरा चुराना कही  थी.  भी नानी जी सिर्फ बुरा  लोग चोराना चाहिए कही थी.  मुझको उस की शब्द बुरा महसूस करा था. नानी जी मेरी निंदा करी थी. मैं उसको सच बताना का निशचय करी थी. यह काफी समय लगाने लगा. लेखिन बार से उस को समझी.  ये बाद में तब मैं  घर गयी. जब मैं घर पर थी मेरी माँ ने मुझ को एक सवाल पुछी "क्या हुआ बेटी?"  मैंने  उस को नानी जी के  शब्दों मेरे बारे में बताया. फिर  माँ नानी जी के साथ बहुत नाराज़ हो गया. माँ ने मुझ को कही " नानी जी  ने, यह चीजों तुम्हेरे साथ के बारे में नहीं कही चाहिए. मैं उस के साथ उन के बारे में बातुं. " और मेरी माँ करी थी.  हमेशा वह बाद में  मेरी  नानी जी मेरी माँ के साथ बाती और तब मेरी माँ मेरे साथ बाती थी.  लेखिन मैं आच्छी बच्ची थी . तो माँ और नानी जी मेरे बारे में बाते नहीं पड़ी. 
मुझको वह दिन बहुत पसंद नहीं है क्योंकि मेरी नानी जी मैं बुरा औरत सोची थी. 

No comments:

Post a Comment