Saturday, 22 October 2011

उदासी - शिवानी सदवाल

दो साल पहले, मेरे पिताजी अचानक बहुत बीमार थे. वे हॉस्पिटल में कुछ महीने से रह रहे थे. हर रोज़ मेरी दादीजी उनके पास वक़्त बिताते थे हॉस्पिटल में. उनको बहुत दुःख लगता था मेरे दादाजी को इस हालत में देखकर. लेकिन इतना सारा स्ट्रेस, दुख, और उदासी अच्छा नहीं होता है. दादाजी को होप्सितल में चार महीने होकर मेरी दादीमा को हार्ट अटक हुआ. यह रात में हुआ, जब मैं घर में निचे टी वी देख रही थी और मेरी मम्मी ने चीखा. मैं यह सुनकर  एकदम  ऊपर भागी और देखा की कुछ बुरा हुआ और मैं उस समय 911 को फ़ोन किया. अमबुलंस आई और मैं अधि रात तक उठी रही पर मम्मी और दादीमा वापस नहीं आये. मैं थककर सो गयी और मुझे विश्वास था की उटकर सब तीख होगा और वे वापस नहीं आये क्योंकि शायद कुछ टेस्ट करने पड़े थे. पर जब मैं सवारे उठी, मम्मी और पापा बिलकुल चुप थे. मैं समझी की वेह थके हुए थे और हम दादीमा को बाद में होप्सितल से घर ले आएंगे. लेकिन यह तो सिर्फ मेरी दिल की इच्छा थी. ब्रेअक्फ़स्त खाने के बाद जब मेरी मम्मी ने मुह खोला बात करने के लिए, मेरे आंसू टपकने शुरू हुए. मुझे पता था की कुछ गलत था, और मम्मी ने बताया की मेरी दादीमा इस दुनिया में नहीं रहे. मैं समझ नहीं पाई की यह क्यों हो रहा था, और मैं स्कूल गयी पर मैं उदासी नहीं चुप पाई. मेरे दोस्त बार-बात पूछने लगे की क्या हुआ की मैं इतनी उदास लग रही थी, लेकिन मैं मुह खोल कर कुछ नहीं कह पाई. मेरी दादीमा मेरे से बहुत करीब थे. मैं उनको कुछ भी बता सकती टी, और क्योंकि वे मेरे साथ हमारे घर में रहते थे, मुझे इतना ग़म महसूस हुआ की मैं आज तक दिन भर उदास होती हूँ. लेकिन ज़िन्दगी मैं बुरी खबरे आती रहती है और कुछ न कुछ होता रहता है, और ताकत के सात जीना पर्ड़ता है, मैंने यह सीखा है. 

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