Tuesday 25 October 2011

एक उदासी दिन

मुझे याद है कि जब मैं नौ साल की थी मैंने पहली बार हैरी पोटर फिल्म देखि थी। उसी दिन मेरे पापा एक सुन्दर सा पशू लेकर आयें थे। एक सुन्दर सा हैंम्स्टर। उसकी आँखें बहुत बड़ी-बड़ी सी थी और उसके गाल बिलकुल गोल-गोल से। उसका शारीर बहुत मुलायम। उसके बाल भूरे रंग के, रोशनी में चमकते थे।
मैंने और मेरी छोटी बहन शुभा ने उसका नाम हैरी रखा/ जब पापा ने हमको हैरी दिखाया, मैं खुश होगयी क्यों कि मैं हिम्मत वाली थी लेकिन मेरी छोटी बहन डरपोक थी और मेरे पीछे छिप गयी। जब हैरी हमारे परिवार में आया, सब को ख़ुशी हुई। खास कर मुझे। मुझे रोज क्लास खत्म होने पर बहुत जोश था क्यों कि में घर आकर हैरी के साथ खेलती थी, हर सुबह, स्कूल जाने से पहले, हम हैरी के प्लेट में उसका खाना रख कर जाते थे और हर दिन, रोज थीं बार हम उसकी पानी कि बोतल में साफ़ पानी भरते थे। हैरी बहुत ही अच्छा पशू था और एक बार भी इसने हमको नहीं काटा। डेढ़- दो साल गुजर गए एंसे, फिर एक रह हैलोवीन कि रत थी, मैं और शुभा बड़े थके-थके घर आकर सो गए। सुबह उते और देखा कि हमारा प्यारा पाही जिसे हमको बाह्यत प्रेम था वेह अपनी आखिरी साँस ले रहा था। उस दिन मैं और मेरी बहन बहुत उदासी से स्कूल गए। बाहर का प्यारा मौसम हमे बहुत चिरारह था। यह खुशी का दिन कैसे हो सकता है? पूरा दिन हुम्मको हैरी की चिंता हो रही थी।
हम घर आये थो देखा किहैरी अपने केज में नहीं था। पापा आएं कमरे से एक बहुत सुन्दर सा डब्बा लेकर, मैं और मेरी छोटी बहन रो पड़े और माँ ने हमको दिलासा दिया, मैं और पापा गए नदी के पास और जब मैंने हैरी को नदी में रखा अचानक से मन को शांति मिली। मैं कभी-कभी सोचती थी कि मेरी बेदर्दी के कारण हैरी को नुकसान हुआ। कि अगर मैंने उस रथ उसको ठीक से देखा होता और पानी भर दिया होता, शायद वेह जिंदा रहेता। लेकिन पापा नेबहुत संजय कि हैरी कीज़िंदगी वैसे ही बहुत काहोती और हमारे दो साल हैं सुके सौ साल। अन मुझे समझ में आया।

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