Sunday, 3 April 2011

उत्तरायण (प्रियांग बक्षी)


मेरा सबसे मनपसंद त्यौहार उत्तरायण है। उत्तरायण गुजरात का एक मशहूर त्यौहार है। वह जनवरी में मनाया जाता है। लोग अपने रिश्तेदार और दोस्त के घर जाते है। वे छत पर जाते है और पतंग को उड़ाते हैं। वे तरह-तरह के रंगीन पतंगे को उड़ाते हैं। ये पतंगे हमेशा काग़ज के बने हुई होते हैं। यह त्यौहार में लोग एक दूसरे की पतंग को काटने की कोशिश करते है। इसलिए, पतंग की रस्सी बहुत पतली बनवाई जाती है। अंत में जिसकी पतंग न कट गई हो, वह आदमी जीता जाता है। जब लोगों की पतंगे कट जाती है और जमीन पर गिरती है, तब छोटे बच्चे पतंग ले लेते हैं। कभी कभी वे पतंग को पकड़ने के लिए भागते है और फिर उसे बेचते है। गुजरात में पतंग उड़ाते वक़्त लोग "बोर" (एक फल) और पापड़ी/चिक्की खाते है। लोग नए हिंदी फिल्मों के गाने भी सुनते है और कुछ लोग अपने छत पर नाचते हैं। गुजरात में लोग उत्तरायण के थोड़े दिन पहेले पतंग उड़ना शुरू करते है। जब में छोटा था और भारत गया था, तब मेरे पिताजी और मैंने एक पोदोसी के छत पर एक बन्दर को देखा था। छत पर एक लड़की और उसके पिताजी भी थे। जब बन्दर ने लड़की को देखा, तब वह उसको थप्पड़ मारने लगा और उसके बाल को खीचने लगा। यह हादसा देखकर लड़की के पिताजी बन्दर को क्रिकेट बेट से मरने लगा। बिचारी लड़की को खूब छोट लगी। मेरे ख्याल में "हम दिल दे चुके सनम" का गाना "कईपोची" बहुत अच्छी तरह उत्तरायण के उत्सव को दिखाता है (http://www.youtube.com/watch?v=A4g-Wpqe2EM)।

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