पुरानों में जब कन्यादान की जाती थी तब दुल्हन का परिवार से दूल्हा का परिवार को पैसा या कोई और कीमती चीज़ दी जाती थी|इतिहास में ऊंचे जाती के परिवारों दहेज़ सिर्फ तौफा में देते थे| लेकिन इस ज़माने के बाद दहेज़ का रिवाज़ बदल गया|कुछ सालों बाद, लोग ऐसे मानते थे की दहेज़ नयी पत्नी का सुरक्षा के लिए दी जाता था| अगर अच्छा दहेज़ न मिलें तो कभी पत्नी को उसके नए घर में बूरी तरह से व्यवहार की जाता था| मेरे ख्याल में, दहेज़ का रिवाज़ हमें पुराने ज़मानों में छोड़ देना चाहिए|आज कल दहेज़ का रिवाज़ सिर्फ लालच (ग्रीड) के वजह से होता है| भारतीय समाज में, कभी कभी महिला कमज़ोर मानी जाती है और पुरुष ज्यादा शक्तिशाली मने जाते हैं|लेकीन अभ भारत ने भी बदलना शुरू किया है|भारत ने दहेज़ का रिवाज़ 1961 में रोक दिया|लेकिन फिर भी छोटे गाँव में यह नियम माना नहीं जा रहा है| | असल में, दहेज़ के कारण औरतों का नुक्सान अभी भी किया जाता है|हर साल कई औरतों का देहांत हो जाता है दहेज़ के कारण| कभी पत्नी जलाई जाती है उसका पति और ससुराल के हाथ से| फिर पुलीस को कहा जाता है की पत्नी की मौत दुर्घटना या आताम्हात्य से हुई| कई औरत ससुराल के घर पर गली और दर्द सहनाती हैं क्यों की ससुराल को लगता हैं की दहेज़ योज्य नहीं था|1993 में लगभग 5373 औरत जलने से मर गयी| इन में से सिर्फ 5 प्रतिशत हत्या माने गये हैं| जाब मैने ये मामले पार पढना शुरू किया तो मैं मेरे हृदय में गहेरा चोट जैसा दर्द महसूस करने लगी| मुझे मालूम भी नहीं था कि भारत में अभी तक औरतों के लिए इतनी मुसीबत है| मेरे पहले सोच में, भारत में "सेक्सिज्म " कम होने लगा था| यह सब पढकर मुझे लगने लगा की दहेज़ की समस्या कम हो जाएगी ताकि हम सब लोग कुछ करें या कहें| कोई भी छोटे गाँव या बड़े शहर में दहेज़ देने का रिवाज़ नहीं होना चाहिए| सर्कार को यह महत्वपूर्ण मामले को ध्यान जरूर देना है|
Monday, 11 April 2011
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