जब मैं छोटे था तब मैं अपने परिवार के साथ नवरात्रि के लिए मंदिर जाता था. नवरात्रि मनाने के लिये दो लोक नाच महत्वपूर्ण थे: गरबा और रास. मुझे गरबा पसंद नहीं था और जब लोग गरबा करते तब मैं अपने दोस्तों के साथ शरारती करते और बहुत कुछ खेलते. खेर यह तो अलग बात है. रात के दूसरे भाग में, मुझे कुछ और करने का मौका मिलता. उन दिनों में, मुझे रास बहुत पसंद आता था. कई प्रकार के रास हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय डांडिया रास है. डांडिया रास में नर्तकियों के दोनों या कभी-कभी सिर्फ एक हाथ में डांडिया पकड़ते हैं और किसी और के साथ डंडिया लगाते है (आम तौर पर चार बार). रास करने के लिए कुछ लोग दो चक्र बनाते है जहां एक चक्र दक्षिणावर्त चलती है और दूसरी चक्र वामावर्त चलती है. लेकिन आप पंक्तियों में भी रास कर सकते है. पहले रास केवल नवरात्रि में महत्वपूर्ण था लेकिन अब रास कई त्योहारों में एक महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाता है जो फसलों से संबंधित हैं. रास की एकसमृद्ध इतिहास है. शुरु शुरु में रास गरबा का एक रूप था जो दुर्गा और महिषासुर के बीच लड़ाई हुई दिखलाने की. यह तलवार नृत्य बुलाया जाता था और डंडिया जो है वे दुर्गा की तलवार का प्रतिनिधित्व करते थे. संगीत रास के साथ पहले महत्वपूर्ण नहीं था लेकिन अब संगीत बहुत महत्वपूर्ण है और कई तरह के होते हैं. रास खेलना बहुत मज़ा आता था और डंडिया अच्छे तलवार बनते थे.
Saturday 17 March 2012
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