Sunday 11 March 2012

एक ज़रूरी दिन-गनमन सिंह

सुबह के पांच बज गए. हर रोज़ की तरह एक क्लोच्क बज गया. उस क्लोच्क को लड़के ने सुन कर बंद कर दिया. उस के बाद वो उत गया. उत कर उस ने सब से पहले तो अपने अप को शीशे में देखा. देख कर वह बातरूम की तरफ गया. बाथरूम में उस ने पहले ब्रुश किया और एक शोवेर लिया. जब वह ना लिया, वह निचे गया. निचे उस ने देखा की कोई लिविंग रूम में नहीं था. लेकिन रसोई से आवाज़ आ रही थी. वह रसोई में गया और देखा की उस की माँ रसोई में थी. "बेटा मैं ने खाना बना दिया है तुम का लो" उस की माँ ने कहा. लड़के ने बैठ के खाना का लिया. वह गुस्सा था की कोई और अभी तक उता नहीं था लेकिन उस ने खाना फिर बी का लिया क्यों की व अपनी माँ को गुस्सा नहीं करना चाहता था. वह भी आज के दिन. जब वह का के उता, उस के पापा रसोई में आए. "सीता खाना बना दिया"उन्होंने पुचा. "हाँ में ने बना दिया आप का लो" माँ ने कहा. "तुम ने कहा लिया" पापा ने पुचा उस से . "जी हाँ में ने कहा लिया" उस ने कहा. क्या यह सब भूल गया आज क्या दिन है उस ने सोचा . वह उपर अपने कमरे में गया और अपना बच्क्पैक लिया स्कूल जाने के लिया. उस ने देखा की सात बज गए हैं. वह स्कूल जाने के लिया निचे गया जब उस ने देखा की लिविंग रूम में कुछ था. वह अंडर गया और "सुरपरिसे" सब चलिए. "हैप्पी बर्थडे" सब बोले. "यह सब मेरे लिया" उस ने पुचा. "जी हाँ बेटा सब तुम्हारे लिया"सब ने कहा. लड़के बहुत कुश हुआ की सब भूले नहीं थे लेकिन उस के लिया एक सुरपरिसे पार्टी थ्रो कर रहे थे.

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