Sunday 8 April 2012

भ्रष्टाचार

हम एकीस्वी सदी में जी  रहें हैं, और इस इस्किवी सदी में भारत एक नए दौर से गुज़र रहा हैं. इस नये दौर कई अची चीज़े हुईं हैं जेसे, उन्नत प्रौद्योगिकी, बेहतर सफाई, और लोगों की जीवन की गुणवत्ता अची हुई हैं. लेकिन, इन अचैयों के साथ, एक नयी समस्या जो पैदा हुई हैं, उसका नाम हैं भरष्टाचार. भारत में, इतनी तार्राकी  के बाद बे भी बहुत गरीबी हैं. इस गरीबी के कारन लोगों को गेर्कानुनी ज़रियों से पैसे बनाने पढ़ते हैं. भ्रस्ताचार जेसे भारतीय जीवन एक हिस्सा हैं. चपरासी से ले कर प्रधानमंत्री इसके जिकड में हैं. इस भारस्ताचार के कारन, अन्य देशों की तुलना में, भारत में विकास की गति बहुत धीरे हैं. किसी भी नये परियोजना में, पहले सभी पक्षों को अपना "हिसा" मिलना चाहिए तभी वह परियोहन को आगे भादने देतें हैं. इसके कारन, धन का दुरूपयोग होता हैं, और कम धन के कारन परियोजन में कटौती करनी पढ़ती हैं. इन कटौतियों के कारन, हल ही में बहुत सरे दुर्घटना हुयें हैं जिसमे बहुत लोगों की मौत हुई.


भ्रस्ताचार के कारन सबे पड़ी परेशानी आम आदमी को झेलनी पढ़ती है, जिसके लिए कोई भी सरकारी काम एक भोज बन जाता हैन. आज के समाज में बहुत लोग घर और ज़मीन खरदीना चाहते हैन, लेकिन भ्रस्ताचार के कारन यह कम आसन नहीं है. पेसे देने के बाद भी लोगों को सरकारी दफ्तर के चक्कर लगाने पढ़ते है क्यूंकि, पहले तो सरकी दफ्तर बहुत अक्षम है, और सरकारी कर्मचारी कोई भी फाइल आसानी से नहीं बढ़ाते अगर उसपे "अतिरिक्त पेसे" का ज़ोर नहीं है. इसका प्रदर्शन भारतीये हीट टीवी प्रोग्राम 'ऑफिस ऑफिस' में बहुत अची तरह से किया गया है. 

भार्स्ताचार एक बढती अर्थव्यवस्था दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम है. तबभी, हमारी पीढ़ी की ज़िम्मेदारी है की हम भर्ष्टाचार को जड़ से निकाल फेकने. यह करने के सब लोगों को अपने से बढ़ कर सोचना पड़ेगा, और हमारी मेहनत देश की उन्नति में लगनी होगी.  जो भी भर्ष्टाचार करेगा, उसके सकत से सकत सजा मिलनी चाहिए. यह करने से, हमारा भारत अपनी असली क्षमता पे बहुत जल्दी पहुच सकता है.

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