रास मेरा मनपसन्द नाच है. रास "वृन्दाव्म" भारत से है, लेकिन वह लोक-प्रिय गुजुरात में. गुजरात में, लोग रास नाचते हैं एक विशेष रात पर: "नवरात्री".
रास में, आदमी और औरते दो गोलियों में नाचते हैं. उनके हाथों में, दो डंडिया हैं. डंडिया अठारह "इंच" हैं. "वेस्ट" में, लोगे कभी कभी दो "लाइन" बनाते हैं, गोलिया नहीं.
अक्सर नाच हिन्दू भगवान "कृष्ण" के बारे में। आजकल, विशेषत कॉलेज कैम्पस पर, छात्रों परम्परागत (पुराना) कदम नया कदम के साथ मिलाते हैं. रास एक लोक नाच है, लेकिन वह अधिसमय बदलेंगा.
दो प्रकार रास हैं। गार्बा रास और डांडिया रास है. भारत प्रदेश पर नाच का तात्पर्य बदलता है. औरते और आदमी परम्परागत कपड़े या अमेरिकन कपड़े पहन सकते हैं. कुछ प्रदेश में, औरते साल्वार कमीज़ पहनती हैं और आदमी केडिया और पगड़ी पहनते हैं.
यह जरूरी है की सब लोगों के पास बहुत ऊर्जा हैं इस नाच के लिए. बहुत मजेदार है परिवार और दोस्तों के साथ नाचना. एक बार, एक भारतीय वाकये में, मैं रास नाची मेरे परिवार और दोस्तों के साथ. हमने यह नाच नहीं समझा लेकिन, मेरी गुजराती सहेली "सोहनी" ने हमें दिखाया और सिखाया. नाचने के बाद, मेरे परिवार में, सब लोगों को अंग अंग दीला हूआ लेकिन अंग अंग मुसकरा उठा भी.
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