Tuesday 27 September 2011

देश की यात्र - बेन जर्मती से

मैं कहाँ जाने चाहता हूँ? कोई सवाल तो नहीं है, मैं भारत ज़रूर जाने चाहता हूँ. क्यों मैं हिंदी सिख रहा हूँ अगर मैं भारत न जाऊंगा?

एक किताब थी, उसको शांताराम कहते हैं, जिससे मैंने भारत के बारे में बहुत मजेदार और दिलचस्प चीजें पढ़ी.

उस किताब पढ़कर, मैं तुरंत से भारत जाने चाहता था. इसलिए मैंने हिंदी की पढ़ाई शुरू की.

भारत की यात्र बहुत महँगी है. इसकी वजह से, मैं एक पांडित्य की खोज कर रहा हूँ. कोई खास पांडित्य तो है, क्रिटिकल भाषाएँ की पांडित्य को कहते है. मैं इसी पाने की कोशिस कर रहा हूँ.

मेरी माता जी को परेशान है. वे नहीं चाहती की मैं वहां अकेले जाऊं. और मेरे पिता जी भी ने मेरी सावधान की है. दोनों सोचते हैं कि यादि उनके बिना भारत जाऊं, मैं लौटने नहीं चाहूँ. पर यह विचार तो सच्चा नहीं है.

जयपुर पहुंचकर, मुझे मालूम नहीं कि क्या बात करूँगा. कुछ नगर और छोटे शहर हैं कि मैं मिलने जाना चाहता हूँ. लेकिन उनके अलावा, मैं सिर्फ भारत घूमना और अपनी हिंदी का अभ्यास करने चाहता हूँ.

शायद भारत से मैं नेपाल, भूटान, या पकिस्तान को मिलने जाऊं.
मुझे विदेशी भाषाएँ पसंद है और एक बेहद शौक है. नेपाल में, हो सकता है कि मैं कुछ नेपाली को पढ़ने कि कोशिस करता हूँ. या पाकिस्तान में कुछ उर्दू बोलने सीख सकूँ. मालूम नहीं!

अंत में, भारत की सारी संस्क्रति मुझे बहुत दिल बदलाऊ लगती है.

1 comment:

  1. नमस्ते बेन.

    मैं भी भारत जाना चाहती है. जब मैं छोटा था भारत चला गया, लेकिन मुझे भारत में याद नहीं है. जब मैं भारत जाना हूँगी, मैं एक संगठन के लिए वालिन्तीर चाहते हैं. वे गरीब परिवारों की मदद होते हैं. मेरे माता पिता भी मुझे अकेला जाने नहीं करना चाहते. उन्होंने कहा कि शायद दो साल में, मैं जा सकते हैं. गुड लक, बेन!

    प्रिया

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