हिन्दू शादियों बहुत लम्बे होते है और रस्मे भी बहुत होते है. हिन्दू लोग रस्मे को बहुत मानते है क्यों की यह रस्मे सब के रिश्तेदार हजारों साल से कर रहे है. जो हिन्दू लोग के रस्मे है कभी कभी बदलते है क्यों कि रस्मे स्थिति पर निर्भर होती है. तमिल नाडू के लोग के शादियों मे दूल्हा और धुलानिया एक दुसरे के ऊपर माला पहनते है. हिन्दू लोगों के शादियाँ पर यह हमेशा होती है, मगर तमिल लोगों के शादियाँ पर धुला और धुलानिया एक दुसरे पर माला तीन बारी पहनते यह. यह एक खेल बन जाता है दोनों जानो के परिवार भी खेलती है और कोशिश करती है कि धुला धुलानिया को माला न पहनवाए.
मैं खुद कश्मीरी पंडित हु और हमारे भी अपने रस्मे है. एक बहुत ज़रूरी रस्म धुलानिया कि कान कि छेद होती है. हमारे रस्म मैं मंगल सूत्र ज्यादा ज़रूरी नहीं है लेकिन डूजौर बहुत ज़रूरी होती यह. डूजौर एक काँटा है जो कान के उंदर से गिरती है. पुराने दिनों मैं यह एक रस्म बन गयी ताकि जब औरते शादी करते थे, उनके पास कोई पैसे कमाने का तरीका नहीं था. तो जब वे शादी करते थे, वेह अपने घर से दुजौर लाते थे, जो हमेशा सोने के होते थे, और अगर बादमे कुछ हो गया, औरत अपने ससुराल के घर से जा सकती थी और उसके पास कुछ पैसे होते. यह बहुत पुरानी रस्म है मगर आज भी कश्मीरी लड़कियां यह करते है. मेरी माँ अब भी अपनी दुजौर पहनती है और मैं भी अपने छेद कारवां चाहती हु.
हिन्दू स्त्री - पुरूष विवाह के बारे में नई जानकारी मिली ।
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