Monday, 25 October 2010

मेरा सबसे अच्छा दिन का शुरू

एक छोटे मिबंध में मेरे दिन सब से अच्छे का वर्णन करना असंभव है| तो मैं अपने दिन के शुरू का वर्णन करूँगी| तभी मैं मुंबई में रह रही थी| उस दिन मैं माहिम में डॉक्टर साधना नायक से मिलना था| मैं जल्दी उठकर ट्रेन स्टेशन बस से गई| मुझे बहुत गर्मी लग रही थी (सब लोग की तरह) और सबार घंटा भर लगा| उस हफ्ते के पहले जब पहला बार डॉक्टर नायक से मिला तब उसका इमारत में मुझ को एक नौकर मिली| उस दिन दुबारा मुझे नौकर मिली, लेकिन इस बार ट्रेन पर एक दूसरे को मिली| हम साथ-साथ एक ही माहिम स्टेशन पर उतरे| स्टेशन से डॉक्टर नायक का दफ़्तर पैदल जाना आधा घंटा लगता था| मैं और नौकर एक ही दफ़्तर में जा रही थीं, तो हम साथ-साथ चलीं| हम बात करना का कोशिश किया लेकिन उसको अँग्रेज़ी नहीं आती थी और मैं तब भी हिन्दी अच्छी तरह नहीं बोल सकती थी| हमने काफ़ी देर चलने के बाद आराम किया| औरत ने मेरे लिए और अपने लिए गन्ने का जूस खरीदा| हम जूस ख़त्म करके दुबारा दफ़्तर की तरफ रवाना हो गई| मुझे उसका उदारता के कारण बहुत कृीताग्या लग रहा था| लेकिन मैं वहाँ बहुत जल्दी पहुँच गई तो औरत ने मुझको बताई कि समुद्र के किनारे जाने का रास्ता किधर है| मैं उसको बहुत बहुत धन्यवाद देकर समुद्र के किनारे बैठ गई| मेरी मीटिंग शुरू होने तक मैंने पत्थर पर बैठकर सीलिंक का पुल देखा| उस दिन की सुबह सब से अच्छी सुबह था| उसके बाद मैं अपने दिन के लिए तैयार थी|

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