बंगाली शादी के रिवाज़ में, शादी से एक दिन पहले "शारीर की हल्दी" होता है. दोनों मुसलमन और हिन्दू लोग यह वाज़ अभ्यास करते है. "शारीर की हल्दी" में, बरात (दूल्हा के बिना) दुल्हन का घर जाते हैं और उसके साथ शादी की साडी, हल्दी पेस्ट, और मेहँदी लाते हैं. बारात भी मछली लाते हैं -- एक मछली दुल्हन है और दूसरा दूल्हा है. ये मछलियां उचल या मिठाइयाँ होता हैं. इस रिवाज़ में, दुल्हन की सहेलियां ख़ास हैं और वे लाल, पिला, या हरारंग कपड़े पेहेनते हैं. अवसर के बाद, सब लोग बड़ा दावत खाते हैं जो दुल्हन की परिवार आयोजन करते हैं.
इसके दौरान, दुल्हन के हाथों पर मेंहदी की नमूने होता है. मेंहदी की नमूने बहुत कठिन हैं. दुल्हन की सहेलियां उसकी हाथों और पेड़ों पर हल्दी लगाती हैं. लोग कहते हैं कि हल्दी लगाने के बाद, दुल्हन और सुन्दर लगते है उसकी शादी के लिए. लोगों दुल्हन को मिठाइयाँ खिलते है. दुल्हन कि "शारीर कि होलुद" के बाद, दूल्हा का "शारीर कि होलुद" होता हैं. दुल्हन का परिवार दूल्हा के साथ समय बिताते हैं और उसके हाथों और पेड़ों पर भी हल्दी लगते है. मुझे यह रिवाज़ बहुत पसंद है क्योंकि धर्मनिष्ठता ख़ास नहीं है. " बंगाल और बंगलादेश मैं लोग "शारीर कि हल्दी" अभ्यास करते हैं.
- नीना
Monday, 22 March 2010
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