Saturday 4 December 2010

वाला

आना: चलो! हम को जल्दी जाना चाहिए!
भावना: तुम मेरा इंतजार हो ! मैं रोटी सेकने वाली हूँ।
आना: मैं नहीं सतकी हूँ क्या तुम करने वाले है। हम देर से नहीं सकती हों । कितना देर लगेगा ?
भावन : तुम दस मिनुत लगेगा.
आना: टिक है। लेकिन जल्दी है! क्या तुम रोटी वाला है? हमको प्रदर्शन जाना चाहिए। आभी!
भावना: चाय वाला वहां होगा?
आना: जी हा। मैं सोचती हूँ कि वह भी बहुत लोग और फल और फुल वाले । मैं सकती हूँ कि अच्छा हो। तुम अभी जाना चाहती हो ?
भावना: लेकिन मैं आपनी रोटी का इंतज़ार करना चाहती हूँ क्योंकि मैं सबसे आच्छी रोटी बनाती हूँ।
आना: चल चल! मैं अकेला जाऊं ?
भावना: मैं लगभग कत्म होने वाली हूँ! मेरा इंतज़ार कीजिये !
आना: नही! हम कोई समय नहीं होगी चाय वाले देखना या फुल मिलना । तब, प्रदर्शन याद करेंगी ! यह बड़ा होंगी !
भावना: अरे! सचमुच! दस मिनुत में हम चलो! उसके बाद रोटी ठड करके हम जाएँ ।
आना: हे भगवन! तुम बताना बताना लेकिन नहीं होती। में तुमको बुलाना शुरू करना रोटी वाली।
भावना: में रोटी वाली से मिलना चाहती हूँ। तब मुझे रोटी के बारे में कोई सिख चाहिए । किनते पैसे प्रदर्शन हैं?
आना: छे डोल्लर वाला टिकेट । क्यों?
भावना: क्योकि इस सवेरे में सब्जियां वाला को अपने पैसे सब दे दो । मुझे सब्सियाँ खाना रोटी के साथ पसंद है ।
आना: बाप रे बाप। तो, प्रदर्शन सात बजे को शुरू हुआ, हम बता रही हैं

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